संविधान- लावणी छंद – राम किशोर पाठक
नीति नियम का ग्रंथ यही है, जिसके सन्मुख समरस रहते।
देश चलाते हैं हम जिससे, संविधान उसको कहते।।
आजादी जब हमने पायी, हमको देश चलाना था।
लोकतंत्र की परिभाषा को, जन-जन तक पहुंँचाना था।।
कैसे आएगी समता अब, मार्ग नया कैसे गहते।
देश चलाते हैं हम जिससे, संविधान उसको कहते।।०१।।
बाइस भागों में यह शोभित, जिसमें हैं तीन सूचियाँ।
विविध अनुच्छेदों में जिसकी, अंकित है सभी खूबियाँ।।
धन्य उद्घोषिका है करती, जिसमें भाव सभी बहते।
देश चलाते हैं हम जिससे, संविधान उसको कहते।।०२।।
बारह दिन ही शेष बचे थे, तीन वर्ष को होने में।
संविधान यह श्रेष्ठ विश्व में, सपनों को संजोने में।।
करते वंदन शीश झुकाकर, जिसको हैं दिल से चहते।
देश चलाते हैं हम जिससे, संविधान उसको कहते।।०३।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
