तुम अपने जीवन के सुदीर्घ पथों को देख,
मात्र निज जीवन-यात्रा पर फोकस करना।
तेरा जीवन सहज, पवित्र, अर्थपूर्ण, परोपकारमय हो—
यह जीवन-दर्शन है, ये बातें तुम सदैव ध्यान रखना।
जीवन में कुछ अति नहीं, कुछ कम नहीं रखना,
मध्यम मार्ग ही श्रेष्ठ मार्ग है—यह सदा याद रखना।
कर्म-विचार ही तेरे वश में है, सदा करते जाना,
निज कुलाचार का ध्यान रख, आगे बढ़ते जाना।
कुकर्म तुम्हारे धर्म को भी नष्ट कर सकता है,
इसे सदा ध्यान और नित्य स्मरण रखना।
सत्कर्म-सद्विचारों से सद्संस्कार बढ़ते हैं,
जब भी अवसर मिले, सत्कर्म करते रहना।
उच्च ध्येयों को ही तुम सदा लक्ष्य बनाना,
लक्ष्य हित सही दिशा में तुम प्रयास करना।
तुम अवश्य सदा विजयी ही रहोगे हे मनुज!
पर धैर्य, धर्म और साहस कभी मत हारना।
तुम कितना जीवन जीते हो, इसका क्या महत्व?
तुमने जीवन कैसा जिया—है यही तत्व अमरत्व।
जन्म-मरण के मध्य यह जीवन कर्मप्रधान,
उज्ज्वल जिसका कर्म है, जीवन वही महान।
ज्ञान, अच्छी शिक्षा जहाँ से भी मिले,
तुम उसे अवश्यमेव ग्रहण कर लेना।
पुण्य, सुंदर वचनों, सद्विचारों को,
यत्र-तत्र से अवश्य एकत्र करते जाना।
तुम प्रगति-पथ पर निरंतर बढ़ते जाना,
साथ ही परोपकार भी करते जाना।
हो सके तो परिवार, समाज, राष्ट्र,
दूसरे लोगों के भी तुम काम आना।
प्रकृति माता की सेवा में कभी-कभी,
वृक्ष लगाते रहना, वृक्ष-रक्षण करना।
प्रकृति के समीप कुछ समय बिताकर,
प्रकृति-पर्यावरण को हरा-भरा रखना।
कर्म-फल से तुम कदापि बच नहीं सकते,
सोच-विचार कर ही तुम कोई कार्य करना।
बिना कर्म के फल की प्राप्ति नहीं हो सकती—
यह बात तुम सदा ध्यान-स्मरण रखना।
अपने आदर्श पर ही तुम निरंतर चलना,
किसी का अंधानुकरण कभी न करना।
सबके उपयोगी-सार बातों को लेकर,
सदा अपना कुछ नवीन देते रहना।
पुष्प, सूर्य, चंद्र-सा सदा नवीन बने रहना,
सूर्य-चंद्र के सदृश प्रकाशमान बने रहना।
खुद के जीवन को सदा प्रकाशित कर,
दूसरों को भी प्रकाश सदा देते रहना।
सदा खुशहाल रहना, हँसना और हँसाना,
हँसी-खुशी से ही निरंतर बढ़ते जाना।
रब की बहुत बड़ी नेमत है यह ज़िंदगी,
इसे शुभ और श्रेष्ठ कार्यों में बिताते जाना।
ईश्वर में आस्था रख, निरंतर कर्म करते जाना,
प्रभु-आराधना भी तुम कुछ समय करना।
समग्र संसार प्रभु का ही रूप है, अंश है—
तुम इसे सदैव ध्यान-स्मरण रखना।
लोक-निंदा हमें बुरे कार्यों से बचाए—
तो उससे तुम अवश्य डरे रहना।
पर वह कर्तव्य-मार्ग में विघ्न बने—
तो तुम उससे कदापि मत डरना।
जब मनुज बनकर आए हो धरा पर,
अवश्य कुछ अमिट छाप छोड़ना।
सदा कर्तव्यपरायण बनकर तुम,
यहाँ से अमर होकर प्रयाण करना।
गिरीन्द्र मोहन झा
+2 भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा (बिहार)