मेरी मुन्नी- बाल कविता- राम किशोर पाठक

मेरी मुन्नी

सुबह खिड़की जब खोली माई,
सूरज की किरणें थी आई।
मुन्नी आँखें खोल न पाई,
मईया ने आवाज लगाई।।

आँखें मींचकर मुन्नी उठी,
मईया से जैसे हो रुठी।
पीकर दूध मीठी-मीठी,
बातें करने लगी अनूठी।।

खुद से हीं पुस्तक को खोली,
देख, प्यार से मईया बोली।
दिल की अपनी राज खोली,
तुम हो कितनी सीधी भोली।।

बिटिया मेरी बात सुनो,
आलस मन में नहीं बुनो।
सुबह-सवेरे उठना चुनो,
तन-मन में स्वास्थ्य को गुनों।।

आलस से सुख होता नष्ट,
फिर जीवन में मिलता कष्ट।
धर्म-कर्म न करना भ्रष्ट,
सौम्य, सुशील रहो स्पष्ट।।

तुमसे महके बगिया मेरी,
चहके हरपल जीवन तेरी।
तू है मेरे मान की टेरी,
तू हीं है जीवन की नेरी।।

टेरी – शाखा,
नेरी- प्रकाश

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978

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