प्रकृति के मनोहर आँगन में, वसंत की बहार है,
वागेश्वरी के वीणा की, गूँजती झंकार है।
श्वेत पद्म व श्वेत वस्त्र हैं, श्वेत वाहन धारती,
नीर-क्षीर-विवेक प्राप्त जो सदभक्तों को तारती,
सत्य बोलें, मधुर बोलें हम, कर्कश न हों जीवन में,
वीणा के झंकृत तान से, मधुरता हो हर मन में,
जिसने जीत लिया स्वयं को, वह जीता संसार है।
वागेश्वरी के वीणा की, गूँजती झंकार है।
कोकिल-कंठी-तान सुनाये, उपवन-अमराई में,
वासंतीयुक्त पीत-पुष्प हैं, सरसों व राई में,
नवदुल्हन का रूप धार वसुन्धरा मुसकाई है,
वीणापाणि के आगमन से, प्रकृति खिलखिलायी है,
सृष्टि के कण-कण में करती, शुभता का संचार है।
वागेश्वरी के वीणा की, गूँजती झंकार है।
संगीत, कला की देवी हैं, हर ज्ञान का सार है,
संस्कृति समुन्नत करती, देती सबल आकार है,
सुख-वैभव व नृत्य-उत्सव को, विद्वता से सँवारती,
गूँगे को वाचाल बनाती, अज्ञानी को तारती
परिश्रम, लगन, समर्पण को माँ, विद्या का उपहार है।
वागेश्वरी के वीणा की, गूँजती झंकार है।
रत्ना प्रिया ‘शिक्षिका’
(11-12)
उच्च माध्यमिक विद्यालय माधोपुर चंडी, नालंदा