उमड़- घुमड़ कर बरसो बादल
केवल बादल नहीं बरसात भी हो ,
प्रचंड गर्मी पर आघात भी हो ।
कुछ हवा चले खूब पानी हो ,
इसमें हम बच्चों की मनमानी हो ।
हर खेत में तुम्हें पानी देना है ,
न तनिक भी मनमानी करना है ।
सब तेरे राह ही देख रहे ,
अब जल से हर खेत भी भरना है ।
गर्मी है इतनी अखंड प्रचंड ,
मानो शोला आसमान से बरस रहे ।
सुबहो शाम पड़ती इतनी गर्मी , ,
सब पेड़ पौधे भी झुलस रहे ।
सब जीवों की पीड़ा बढ़ी हुई ,
मानव भी इसमें शामिल है ।
उस मानव में हम बच्चे भी ,
स्वदेश के लिए बड़े कामिल हैं ।
हम बच्चे बड़े सयाने हैं ,
पर नयनों से पीड़ा झलक रही ।
दया दृष्टि भी तनिक इधर दे दो ,
हर दृष्टि हमारी फलक रही ।
पत्ते हरे रोज मुरझाते हैं ,
यह बात हमें तड़पाते हैं ।
तपती है धरती तवा समान ,
मानो मौसम भी आग लगाते हैं ।
सब तेरे ही आस लगाए हैं ,
गर्मी से सभी सताए हैं ।
बादल तू अब जरा देर न कर ,
तुम्हें अपने नयनों में ही समाए हैं।
उमड़ घुमड़ कर बरसो बादल ,
धरती की प्यास बुझाओ न ।
सब जीव तड़पते तुम्हारे बिना ही ,
जीवों में आस जगाओ न ।
झमाझम बरसो तुम पानी बनकर ,
आओ बादल तू जल लेकर ।
किसानों के चेहरे मुरझाए हुए ,
तुम बन अमृत उन्हें जल देकर ।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा, जिला मुजफ्फरपुर