उमड़- घुमड़ कर बरसो बादल – अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

उमड़- घुमड़ कर बरसो बादल

केवल बादल नहीं बरसात भी हो ,
प्रचंड  गर्मी   पर  आघात  भी हो ।
कुछ  हवा  चले   खूब  पानी   हो ,
इसमें हम बच्चों की मनमानी हो ।

हर    खेत  में तुम्हें  पानी  देना है ,
न  तनिक भी  मनमानी करना है ।
सब   तेरे  राह    ही    देख      रहे  ,
अब जल से हर खेत  भी भरना है ।

गर्मी     है    इतनी    अखंड     प्रचंड ,
मानो शोला    आसमान से  बरस रहे ।
सुबहो   शाम    पड़ती   इतनी    गर्मी , ,
सब   पेड़   पौधे    भी    झुलस    रहे ।

सब  जीवों  की पीड़ा बढ़ी हुई ,
मानव  भी  इसमें   शामिल  है ।
उस  मानव   में   हम बच्चे भी ,
स्वदेश के लिए बड़े कामिल हैं ।

हम  बच्चे    बड़े    सयाने    हैं ,
पर नयनों से  पीड़ा झलक रही ।
दया दृष्टि भी तनिक इधर  दे दो ,
हर  दृष्टि  हमारी   फलक   रही ।

पत्ते   हरे रोज   मुरझाते हैं ,
यह    बात  हमें   तड़पाते  हैं ।
तपती  है धरती तवा   समान ,
मानो मौसम भी  आग लगाते हैं ।

सब  तेरे  ही   आस  लगाए  हैं ,
गर्मी    से     सभी    सताए   हैं ।
बादल तू  अब जरा  देर न  कर ,
तुम्हें अपने नयनों में ही समाए हैं।

उमड़ घुमड़ कर बरसो बादल ,
धरती की प्यास बुझाओ न ।
सब जीव तड़पते तुम्हारे बिना ही ,
जीवों में आस जगाओ न ।

झमाझम बरसो तुम पानी  बनकर ,
आओ   बादल   तू   जल     लेकर ।
किसानों  के  चेहरे    मुरझाए  हुए ,
तुम बन अमृत    उन्हें   जल देकर ।

अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा, जिला मुजफ्फरपुर

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