विधा ➖ धत्तानन्द छन्द (११/७/१३)
१.
जीवन यह अनमोल, भजिए राम,
कृपालु है वही सब पर।
भाव-भक्ति से बोल, सीता राम,
चले आते हैं सुन कर।।
२.
संत-संग में आज, हुए पावन,
जीवन कर पाएं सफल।
भव्य निर्मल समाज, लगे भावन,
जिससे होता मन विमल।।
३.
अपने कर्म सुधार, दंभ-विचार,
करिए परित्याग कलुष।
संतन वाणी सार, करे निखार,
बनिए हर्षित सत्पुरुष।।
४.
मानव जीवन संग, माया-मोह,
फैलाया चादर सघन।
महक उठे हर अंग, लेते टोह,
सज्जन करते हैं जतन।।
५.
संयम को स्वीकार, सदा सुधार,
रखिए कर्म सदा सरल।
कर सत्संग विचार, है आधार,
मिटाए संताप गरल।।
६.
ज्ञान-चक्षु को खोल, विविध प्रकार,
भरते सज्जन गुण सुघर।
अंतस मन में बोल, खुशी अपार,
यही सत्संग का असर।।
७.
मिले सत्य का बोध, हारे काल,
करता रहता जो भजन।
मिटें सभी अवरोध, बनते ढाल,
सारे संतों का कथन।।
८.
बदले सबका शील, हो उत्कर्ष,
जहाँ सत्संग का चरण।
तर जाता है भील, राम सहर्ष,
ले लेते अपने शरण।।
९.
रखना है विश्वास, प्रभु का साथ,
संतन-सेवा का वरण।
बनकर देखो दास, मिलते नाथ,
शुद्ध भाव रख आचरण।।
१०.
शांति अमन की राह, प्रेम प्रवाह,
संतों के संग रह कर।
सबको मिलती वाह, कृपा अथाह,
जीवन रहता निखर कर।।
११.
बदल जाते स्वभाव, दुष्ट विचार,
मिटता सत्संग गह कर।
इसका यही प्रभाव, रूप निखार,
बढ़ाता जीवन पथ पर।।
१२.
पाठक को वरदान, पाकर ज्ञान,
करता छंदों का सृजन।
करिए जो गुणगान, कृपा-निधान,
मिलते संतों के भजन।।
राम किशोर पाठक, सियारामपुर, पालीगंज, पटना, बिहार