मित्रवत व्यवहार – जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

Jainendra

रूप घनाक्षरी छंद

आपसी बढ़ाए प्रीत,
लिखिए नवल गीत,
अपने पराए हेतु,
दिल में भरा हो प्यार।

कोई नहीं बड़ा-छोटा,
नहीं कोई खरा-खोटा,
शत्रुता को भुलाकर,
सबको बनाएंँ यार।

छोटों को देकर मान,
रखें सुविधा का ध्यान,
चर व अचर से हो,
मित्रवत व्यवहार।

गम को छुपा के हंँसी,
दीजिए असीम खुशी,
हारे को भी डालें बढ़,
गले में फूलों का हार।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म. वि. बख्तियारपुर, पटना

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