हम शिक्षक – डॉ स्नेहलता द्विवेदी

हम शिक्षक

 

धीरे धीरे मैं गढ़ती हूँ, घर घरौंदा आदिम सब,

जाने जैसे कैसे लिखती वर्ण व आख़र आखिर सब।

कोमल निर्मल मन पर लिखती खेल खिलौने बाकिर सब,

जाने ऐसे वैसे लिखती बच्चों के जज्बाती सब।

कोरा पन्ना कोरी फ़ितरत कोर न छोड़ी बाकी सब,

आखिर कैसे कैसे गढ़ गई लपट अंँगूठा बाकी सब।

मीरा और रसखान रचा है, रहा कहाँ कोई बाकी अब,

शंकर और कलाम रच दिया अवनि व्यमिका कविता सब।

मैं शिक्षक रचती बसती हुँ नहीं कही कोई बाकी अब।

तन मे मन मे और जीवन मे मेरा ही सब बाकी अब,

मानव को मानव बनवाती नहीं कोई है थाती अब।

मैं शिक्षक बस होम हो जाती बच जाती है राखी अब।

 

डॉ स्नेहलता द्विवेदी

उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

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