पिता – गिरींद्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

पिता

परमपिता परमेश्वर हैं, हम सब उनकी संतान,
उन्हीं की अनुकम्पा से, हम सब सदा क्रियमाण ।
सबसे पहले परमपिता परमात्मा को प्रणाम,
उन्हें वन्दन, उनका स्तवन, पुण्यप्रद उनके नाम।।

पिता अनुशासन है, पिता उदाहरण है,
पिता ही प्रेरणा है, पिता दुख निवारण है,

पिता अपने संतानों का साहस है,
एक शब्द में कहूंँ तुलसी का मानस है।

पिता परिवार का पालक है,
हर परेशानियों का निवारक है,

उनका एक-एक वचन प्रेरक है,
वे गुरु हैं,अच्छे संदेशों का वाहक है,

वे शिक्षा देते, मनुष्य बनकर आये हो,
परिवार, समाज, राष्ट्र के तुम आना काम,

उत्साह, साहस, निष्ठा के साथ दायित्वों का पालन करना,
शुभ और श्रेष्ठ कार्यों में ही बिताना अपनी जिंदगी तमाम ।

अच्छा उस्ताद नहीं, अच्छा शागिर्द हमेशा बने रहना,
जहां से भी हो, अच्छी शिक्षा सदा तुम लेते रहना ।

आत्म-सुधार, आत्म-प्रगति के संग पर-उपकार सदा करना,
अपने शुभ कार्यों से मानव समाज के लिए दृष्टांत बनना।

सभी पिताओं को मेरा प्रणाम,
है प्रेरक उनका वचन, उनका नाम ।

……गिरीन्द्र मोहन झा

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