नन्हा पौधा
दादा जी ने बीज लगाया,
दादी ने पानी डलवाया।
चुन्नू-मुन्नू दौड़े आएँ,
साथ में खाद भी लेकर आएँ।।
सात दिनों के बाद बीज ने,
नहीं-नन्हीं पलकें खोली।
बड़ी सलोनी है यह दुनिया,
छोटी सी कोंपल फिर बोली।।
धीरे-धीरे उस कोंपल ने,
नन्हें पौधे का रूप लिया।
हुआ बड़ा जब सांँसें छोड़ी,
तब ऑक्सीजन हमें दिया।।
छांँव दिया,फल-फूल दिए,
लकड़ी से घर-द्वार बने।
बने शाख पर चिड़ियों के घर,
सुख देता है छांँव घने।।
आओ शपथ उठाएंँ हम,
मिलकर पेड़ लगाएँ हम।
खुशहाल बने सब का जीवन,
धरती को स्वर्ग बनाए हम।।
बिंदु अग्रवाल
शिक्षिका मध्य विद्यालय
गलगलिया किशनगंज बिहार
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