यह जीवन क्या है ? जहाँ संवेदनाओं के तार जुड़ते हैं, अपने कहाने वाले भी मुड़ते हैं। मनुष्य कभी अपनों से घिरा होता है, कभी परायों से मिला होता है,…
Category: Bhawna
अदृश्य जीवन चालक- अमरनाथ त्रिवेदी
कोई तो चलानेवाला होता है यह जीवन क्या है ? जहाँ संवेदनाओं के तार जुड़ते हैं, अपने कहाने वाले भी मुड़ते हैं। मनुष्य कभी अपनों से घिरा होता है, कभी…
हृदय का कूप माँ – अवनीश कुमार
माँ! केवल माँ नहीं है वो, घर का दीया है, दीये की बाती है, चूल्हे की आग है, तवे की रोटी है, घर का द्वार है, द्वार की चौखट…
मेरे दोस्त – संजय कुमार
ये कैसे दोस्त हैं मेरे मुझे बूढ़ा होने नहीं देते सभी दूर हैं मुझसे कोई नहीं है आस-पास। पर सभी जुड़े हैं एक दूसरे से मोतियों की माला की तरह…
मेरे राम- स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’
राम जप है, राम तप है, राम आदि अंत है। राम राग, राम त्याग, राम तो अनंत है। राम जप है, राम तप है, राम आदि अंत है। ज्ञान…
देवी माँ- कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
देवी माँ के असली रूप को भला कौन है जान पाया, जैसा जिसका भाव माँ ने उसको वैसा रूप दिखाया। जिस किसी ने भी मातारानी को जिस भाव से…
कर्म-पथ- सुरेश कुमार गौरव
जिस पथ में चला सदा सत्य है यह कर्म-पथ उतार तो कहीं चढ़ाव का है ये जीवन सु-पथ। जीवन के हर मोड़ पर जिनको भी देखा सदा वो पूरा भी…
जिन्दगी के दौर में – Sanjay Kumar
जिन्दगी के दौर में जब खुद को अकेले पाना तुम खुद ही, ख़ुद का सूरज समझ लेना जो स्याह रात को, समाप्त करता है। जब मंजिल मुश्किल और दूर लगे…
गाँधी हुए उदास रे- स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’
हे मन ! गाँधी को ढूँढू रे, नगरी-नगरी गाँव रे। नहीं मिले वो मेरे बापू, देख लिया सब ठाँव रे। नयन थक गए, वसन भी फट गए, देख न…
मेरी हर यात्रा- अवनीश कुमार
सुन री सखी-सहेली! वे राम बने, मैं मर्यादा की सीमा बनूँ, वे कृष्ण बने, मैं राधा की काया बनूँ, वे विष्णु बने, मैं उनकी हरिप्रिया बनूँ, वे शिव बने,…