मेरा गॉंव – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति

आइए मेरे गाँव में, अजी बैठिए छांव में, प्रकृति के नजारे को, समीप से देखिए। समृद्ध खलिहान है, मेहनती किसान हैं, ताजे-ताजे उपज का, आंनद तो लीजिए। कोलाहल से दूर…

पर्यावरण दिवस – एस.के.पूनम।

🙏ऊँ कृष्णाय नमः🙏 मनहरण घनाक्षरी पर्यावरण दिवस(ठान लिया मन है) बढ़ रहा तापमान, धरा सहे अपमान, सांसे ले ठहर कर,प्राण वायु कम है। अरण्य सिमट रहा, घोंसला उजड़ रहा, रेतों…

गर्मी से बचकर – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

इस बार मौसम का अलग नजारा दिखे, दोपहर साँय-साँय, हवा चले कसकर। धूप की लपट बीच जलता है अंग-अंग, तपन चुभाए बिष, नागिन सी डँसकर। पानी भी पसीना बन उड़…

महिला शिक्षिकाओं को समर्पित- चांदनी समर

मम्मी मेरी शक्तिशाली, आधी रात उठ जाती है अंधेरे में जाग कर खाना वो बनाती है झाड़ू पोछा बर्तन कपड़े, फिर खुद जा नहाती है जूते मोजे बस्ता टिफिन हम…

लोक-लज्जा- अवनीश कुमार

ख़ून से लथपथ एक काया. फ़ेंका गया था लहरताल मे उपजी झाड़ियों मे रो रहा था शिशु बिलख-बिलख कर ईश्वरीय संयोग हुआ कुछ ऐसा नव विवाहित युगल की बग्घी उतरी…

रिश्ते दिलों के- मनु कुमारी

रिश्ते दिलों के निभाये हैं हमने, गमों में भी अक्सर मुस्कुराये हैं हमने। है बहुत हीं प्यारा ये नाजुक सा बंधन, फूलों की भांति संवारा है हमने। कभी डांट फटकार…