सूरज भैया – अवनीश कुमार

  सूरज भैया सूरज भैया क्यों है तुम्हारे गाल लाल क्या मम्मी ने तुम्हें डाँटा है या पापा ने मारा तमाचा है? ये गुलाबी नहीं दिखते मुझको तुम्हारे अंगारों से…

दूर तक चलते हुए -शिल्पी

घर की ओर लौटता आदमी होता नहीं कभी खाली हाथ हथेलियों की लकीरों संग लौटती हैं अक्सर उसके अभिलाषाएं, उम्मीद, सुकून और थोड़ी निराशा घर लौटते उसके लकदक कदम छोड़ते…

मेरा गॉंव – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति

आइए मेरे गाँव में, अजी बैठिए छांव में, प्रकृति के नजारे को, समीप से देखिए। समृद्ध खलिहान है, मेहनती किसान हैं, ताजे-ताजे उपज का, आंनद तो लीजिए। कोलाहल से दूर…