गौ माता को हम-सब जानें – बाल कविता
दुग्ध, क्षीर, पय, गोरस लाना।
स्तन्य, पीयूष, दोहज जाना।।
सुधा, सोम हीं सुर को भाए।
देवाहार यही कहलाए।।
जीवनोदक, अमृत भी कहते।
इससे हरपल पोषण गहते।।
दूध गाय है देती हमको।
सदा नीरोग रखती सबको।।
आओ बच्चें गौ को जानें।
क्यों इसको हम माता मानें।।
भला जानवर यह चौपाया।
भद्रा, धेनु सभी को भाया।।
कहते गौरी, सुरभी जिसको।
पयस्विनी, गोंवत्री इसको।।
कहते इसे हैं हिंदुमाता।
मल-मूत्र तक काम है आता।।
होती है यह सीधी-सादी।
गौमाता कहती है दादी।।
कहती सुर-गण बसते इनमें।
दूध, दही, घी, मक्खन जिनमें।।
तरह-तरह की बने मिठाई।
खीर, सेवई सभी बनाई।।
लक्ष्मी जैसी घर में रहती।
नहीं कभी दुख अपनी कहती।।
अनेक नस्लें होती इसकी।
कुछ महँगी कुछ सस्ती जिसकी।।
रंग बिरंगे रूपों वाली।
लगती है यह बड़ी निराली।।
यही नंदिनी, कामधेनु है।
जिसका पावन चरण रेणु है।।
वेणु बजाकर कृष्ण चराएँ।
तभी गोपाल वे कहलाएँ।।
इसकी सेवा कर जो चलता।
सहज सौम्यता उसमें पलता।।
गौ पालन को कहते सबसे।
सुख मिलता पाठक को इससे।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978